ग्रहण किसे कहते हैं? सूर्य ग्रहण किसे कहते हैं? चंद्रग्रहण किसे कहते हैं?

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ग्रहण
[ECLIPSE] 

हम पिछले अनुच्छेद में पढ़ चुके हैं कि किसी अवरोधक (वस्तु) की छाया का बनना, प्रकाश के सीधी रेखा में गमन के कारण होता है। छाया बनने के आधार पर हम ग्रहण के पड़ने को अच्छी तरह समझा सकते हैं। जैसे, जब सूर्य द्वारा चन्द्रमा की बनी छाया में पृथ्वी आ जाती है तो सूर्य ग्रहण पड़ता है तथा जब सूर्य द्वारा पृथ्वी की बनी छाया में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्र ग्रहण पड़ता है। अतः ग्रहण का पड़ना

जोकि प्राकृतिक घटना है, प्रकाश के सीधी रेखा में गमन की पुष्टि करता है। 
सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse)

                   हम जानते हैं कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में चक्कर लगाती है व एक निश्चित समय में एक चक्कर पूरा करती है तथा चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में चक्कर लगाता है व एक निश्चित समय में एक चक्कर पूरा करता है। परिक्रमा करते हुए, जब चन्द्रमा, सूर्य व पृथ्वी के बीच आ जाता है तो सूर्य ग्रहण पड़ता है। सूर्य का आकार चन्द्रमा से काफी बड़ा होता है, इसलिए चन्द्रमा के पीछे प्रच्छाया व उपच्छाया दोनों ही शंकु बनते हैं (चित्र 1.7)। जब ये शंकु पृथ्वी की सतह को छूते हैं तो पृथ्वी की सतह पर चन्द्रमा की छाया बनती है जिसमें प्रच्छाया व उपच्छाया दोनों ही होती हैं। यह घटना केवल अमावस्या (New Moon) के दिन ही होती है। चन्द्रमा के पीछे बने प्रच्छाया व उपच्छाया शंकु, पृथ्वी की सतह को कभी छूते हैं और कभी नहीं भी। ऐसा दो कारणों से होता है, पहला कारण यह है कि चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर जिस कक्षा में चक्कर लगाता है, उसका तल, पृथ्वी की कक्षा (जिसमें पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है) के तल से 5° के कोण पर झुका रहता है। दूसरा कारण यह है कि पृथ्वी और सूर्य तथा पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच की दूरियाँ बदलती रहती हैं जिसके कारण पृथ्वी कभी तो चन्द्रमा के पीछे बने प्रच्छाया शंकु के अन्दर आ जाती है और कभी नहीं भी आती है। अतः सूर्य ग्रहण प्रत्येक अमावस्या को नहीं पड़ता है।
              जब चन्द्रमा के पीछे बने प्रच्छाया व उपच्छाया शंकु पृथ्वी की सतह को छूते हैं तो पृथ्वी की सतह पर चन्द्रमा की छाया बनती है। इस छाया में प्रच्छाया व उपच्छाया दोनों उपस्थित होती हैं। पृथ्वी के जिस भाग पर प्रच्छाया पड़ती है, वहाँ से देखने पर हमें सूर्य का कोई भी भाग दिखाई नहीं देता है। अतः प्रच्छाया के अन्दर आने वाले प्रत्येक बिन्दु से हमें पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देता है। पृथ्वी के जिस भाग पर उपच्छाया पड़ती है, वहाँ से देखने पर हमें सूर्य का कुछ भाग दिखाई देता है तथा कुछ भाग दिखाई नहीं देता है क्योंकि उपच्छाया के अन्तर्गत सूर्य के कुछ भाग से तो प्रकाश पहुँचता है तथा कुछ भाग से नहीं। अतः उपच्छाया के अन्दर आने वाले प्रत्येक बिन्दु से हमें आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है। 
चन्द्रमा तथा पृथ्वी के बीच की दूरी बदलती रहने के कारण कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती है कि पृथ्वी की सतह पर चन्द्रमा की बनी छाया में केवल उपच्छाया ही होती है, जैसे-चित्र 1.6 में पर्दे की S"' स्थिति में अवरोधक की बनी छाया। ऐसी स्थिति में छाया के MN भाग जोकि प्रच्छाया शंकु के ज्यामितीय विस्तार के कारण बनता है, में स्थित प्रत्येक बिन्दु पर सूर्य के ऊपरी भाग से तो प्रकाश पहुँचता है लेकिन मध्य भाग से नहीं, अतः छाया के MN भाग के अन्दर आने वाले प्रत्येक बिन्दु से सूर्य वलय (Ring) के रूप में दिखाई देता है। इस प्रकार के सूर्य ग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse)

          जैसा कि हम पढ़ चुके हैं कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में चक्कर लगाती है तथा चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में चवकर लगाता है। परिक्रमा करते हुए जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के बीच आ जाती है तो चन्द्र ग्रहण पड़ता है। सूर्य का आकार पृथ्वी से बड़ा होता है, इसलिए पृथ्वी के पीछे प्रच्छाया व उपच्छाया दोनों ही शंकु बनते हैं (चित्र 1.8)। पृथ्वी का आकार चन्द्रमा से बड़ा होने
के कारण इसके पीछे बने प्रच्छाया व उपच्छाया शंकुओं का आकार इस प्रकार का होता है कि परिक्रमा करता हुआ चन्द्रमा पूरा का पूरा प्रच्छाया शंकु या उपच्छाया शंकु के अन्दर आ जाता है। जब चन्द्रमा प्रच्छाया शंकु के अन्दर आ जाता है तब पूर्ण चन्द्र ग्रहण की स्थिति होती है तथा जब चन्द्रमा का कुछ भाग प्रच्छाया शंकु व कुछ भाग उपच्छाया शंकु के अन्दर आता है तब आंशिक चन्द्र ग्रहण की स्थिति होती है। जब चन्द्रमा उपच्छाया शंकु के अन्दर होता है तब उसकी चमक कम हो जाती है तथा वह धुंधले लाल रंग या ताँबे के रंग का दिखाई देता है। चन्द्र ग्रहण कभी भी वलयाकार नहीं होता है क्योंकि पृथ्वी के पीछे बने प्रच्छाया शंकु की शीर्ष हमेशा, परिक्रमा कर रहे चन्द्रमा की कक्षा के बाहर होती है।
              चन्द्र ग्रहण हमेशा पूर्णमासी (FULL MOON)
के दिन ही पड़ता है क्योंकि पृथ्वी का सूर्य और चंद्रमा के बीच आना केवल पूर्णमासी के दिन ही संभव है।
चंद्र के प्रत्येक पूर्णमासी के दिन नहीं पड़ता है,इसका कारण चंद्रमा की कक्षा के तहलका पृथ्वी की कक्षा के तल से 5° के कोण पर झुकाना होना है।

 

महत्वपूर्ण तथ्य

• चंद्रग्रहण 1 वर्ष में अधिक से अधिक दो बार पड़ सकता है।

• पूर्ण सूर्य ग्रहण औसतन 18 महीने बाद पड़ता है लेकिन किसी एक स्थान पर इसकी पुनरावृत्ति 370 साल बाद होती है।

• पूर्ण सूर्य ग्रहण 7 मिनट, 31 सेकेण्ड से अधिक समय तक कभी नहीं पड़ सकता है।

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