छाया किसे कहते है? छाया की परिभाषा क्या है?

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 छाया

[SHADOW] 

किसी अपारदर्शी अवरोधक की छाया का बनना, प्रकाश के सीधी रेखा में गमन की पुष्टि है। जब कोई अपारदर्शी अवरोधक प्रकाश के रास्ते में आता है तो उस पर पड़ने वाली प्रकाश किरणें रुक जाती हैं तथा अवरोधक के आस-पास से जाने वाली किरणें सीधे निकल जाती हैं। इस प्रकार अवरोधक के पीछे जितने स्थान पर किरणें नहीं पहुँच पाती हैं; वहाँ अन्धेरा हो जाता है। इसी अन्धेरे स्थान को छाया कहते हैं। छाया का आकार; अवरोधक के आकार, प्रकाश-स्रोत के आकार तथा अवरोधक व छाया के बीच की दूरी पर निर्भर करता है। चित्र 1.3 में L प्रकाश का एक बिन्दु स्रोत है तथा AB एक अपारदर्शी अवरोधक है व S एक पर्दा है जिस पर छाया बनती है। LA व LB के बीच प्रकाश-स्रोत द्वारा उत्सर्जित प्रकाश किरणे अवरोधक द्वारा रोक ली जाती हैं तथा पर्दे पर छाया A'B' बन जाती है। यहाँ पर यह देखा जा सकता है कि यदि हम अवरोध व पर्दे के बीच की दूरी को बढ़ाते हैं तो छाया का आकार बढ़ जाता है।

चित्र । 4 में, LL' एक वृहद प्रकाश स्रोत है तथा AB एक अपारदर्शी अवरोधक है व S एक पर्दा है जिस पर छाया बनती है। इस स्थिति में अवरोधक की पर्दे पर बनी छाया दो भागों में विभाजित होती है जिसमें से एक भाग CD पूरी तरह काला होता है क्योंकि इस भाग में कोई भी प्रकाश किरण नहीं पहुँचती है। दूसरे भाग EC या FD में प्रकाश-स्रोत के कुछ बिन्दुओं से प्रकाश पहुँचता है तथा कुछ से नहीं पहुँचता है, इसलिए यह भाग आंशिक प्रकाशित (आंशिक काला) होता है।

दोनों स्थितियों में अवरोधक व पर्दे के बीच की दूरी बराबर है तथा अवरोधक व प्रकाश-स्रोत के बीच की दूरी भी बराबर है। अवरोधक का आकार भी दोनों स्थितियों में समान है लेकिन छाया दोनों स्थितियों में समान नहीं है जिससे यह स्पष्ट होता है कि छाया प्रकाश-स्रोत के आकार पर निर्भर करती है। 

प्रच्छाया एवं उपच्छाया (Umbra and Penumbra)

जैसा कि हम ऊपर पढ़ चुके हैं कि जब हम बिन्दु प्रकाश-स्रोत की जगह वृहद प्रकाश-स्रोत लेते हैं तो किसी अवरोधक की छाया दो भागों में विभाजित हो जाती है जिसमें से एक भाग पूर्ण काला होता है तथा दूसरा आंशिक काला होता है। छाया के पूर्ण काले भाग को प्रच्छाया तथा आंशिक काले भाग को उपच्छाया कहते हैं। चित्र 1.4 में छाया का CD भाग प्रच्छाया तथा EC या DF भाग उपच्छाया कहलाता है। प्रच्छाया व उपच्छाया का आकार वृहद प्रकाश-स्रोत के आकार पर निर्भर करता है। वृहद प्रकाश-स्रोत के आकार के आधार पर प्रच्छाया व उपच्छाया के बनने को हम तीन भागों में बाँटते हैं।

(1) जब वृहद प्रकाश-स्रोत का आकार अवरोधक के आकार से छोटा है- चित्र 1.4 में प्रकाश स्रोत LL', अवरोधक AB से छोटा है। यहाँ पर हम मान सकते हैं कि प्रकाश स्रोत LL' अनेक बिन्दु स्रोतों से मिल कर बना है जो एक-दूसरे से सटे हुए रखे हैं। प्रकाश-स्रोत के एक सिरे पर स्थित बिन्दु-स्रोत L से आने वाली किरणों में से LA व LB के बीच की किरणों को अवरोधक AB रोक लेता है तथा पर्दे पर अवरोधक AB की छाया CF बनती है। इसी प्रकार प्रकाश-स्रोत के दूसरे सिरे पर स्थित बिन्दु स्रोत L' से आने वाली किरणों में से L'A व L'B के बीच की किरणों को अवरोधक AB रोक लेता है तथा पर्दे पर अवरोधक AB की छाया DE बनती है।

यहाँ पर यह स्पष्ट है कि पर्दे पर CD भाग में स्थित कोई भी बिन्दु प्रकाश-स्रोत LL' के किसी भी बिन्दु-स्रोत से प्रकाश प्राप्त नहीं करता है। अतः यह भाग पूरी तरह काला होता है जिसे हम प्रच्छाया कहते हैं। छाया का EC या FD भाग प्रकाश-स्रोत के कुछ बिन्दु स्रोतों से तो प्रकाश प्राप्त करता है लेकिन कुछ बिन्दु स्रोतों से प्रकाश प्राप्त नहीं करता है। अतः यह भाग पूर्ण काला न होकर आंशिक प्रकाशित होता है जिसे हम उपच्छाया कहते हैं। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि अवरोधक की छाया में उपच्छाया, प्रच्छाया को चारों ओर से घेरे रहती हैं। अवरोधक और पर्दे के बीच की दूरी बढ़ाने पर प्रच्छाया व उपच्छाया दोनों ही आकार में बढ़ती हैं।

(2) जब वृहद प्रकाश-स्रोत का आकार अवरोधक के आकार के बराबर है- चित्र 1.5 में प्रकाश-स्रोत LL' अवरोधक AB के बराबर आकार का है। 

यहाँ पर भी स्रोत LL' को अनेक बिन्दु-स्रोतों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। प्रच्छाया व उपच्छाया के बनने की व्याख्या भाग (i) के अनुसार की जा सकती है। यहाँ पर अवरोधक और पर्दे के बीच की दूरी को बढ़ाने पर प्रच्छाया के आकार में कोई परिवर्तन नहीं होता है

जबकि उपच्छाया का आकार बढ़ता है।

 (3) जब वृहद प्रकाश-स्रोत का आकार अवरोधक के आकार से बड़ा है- चित्र 1.6 में स्रोत LL' का आकार अवरोधक AB के आकार से बड़ा है। ऊपर वर्णित दोनों स्थितियों के समान यहाँ पर भी स्रोत LL' को अनेक बिन्दु स्रोतों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं तथा इस स्थिति में भी प्रच्छाया व उपच्छाया बनने की व्याख्या भाग (i) के अनुसार की जा सकती है। यहाँ पर प्रच्छाया का आकार अवरोधक के आकार से छोटा होता है तथा पर्दे की अवरोधक से दूरी बढ़ाने पर प्रच्छाया का आकार घटता है।

पर्दे की S" स्थिति में प्रच्छाया घटकर एक बिन्दु का आकार ले लेती है (बिन्दु 0)। पर्दे और अवरोधक के बीच की दूरी को और आगे बढ़ाने पर प्रच्छाया का बनना बन्द हो जाता है। पर्दे की S" स्थिति में अवरोधक की छाया का M से ऊपर का भाग तथा N से नीचे का भाग आंशिक काला होता है तथा छाया के MN भाग में किसी भी बिन्दु पर प्रकाश, प्रकाश स्रोत के ऊपरी व निचले सिरे से पहुँचता है लेकिन प्रकाश स्रोत के मध्य भाग से कोई प्रकाश नहीं पहुँचता है, इस कारण MN भाग भी आंशिक प्रकाशित (आंशिक काला) होता है। 

अतः इस स्थिति में अवरोधक की छाया केवल उपच्छाया ही होती है। पर्दे की दूरी और अधिक बढ़ाने पर उपच्छाया का आकार बढ़ता है तथा साथ ही इसका कालापन कम होता जाता है। पर्दे और अवरोधक के बीच की दूरी काफी अधिक होने पर अवरोधक की उपच्छाया तथा पूर्ण प्रकाशित क्षेत्र के बीच में अन्तर इतना कम होता है कि उसे देखा नहीं जा सकता है। इसी कारण आसमान में काफी ऊँचाई पर उड़ती चिड़िया की दोपहर के समय में, पृथ्वी पर कोई छाया नहीं बनती है। यहाँ पर सूर्य वृहद प्रकाश स्रोत व पृथ्वी पर्दे का कार्य करती है। पृथ्वी (पर्दा), चिड़िया (अवरोधक) से काफी दूर होने के कारण उपच्छाया शंकु से बाहर रहती है तथा उपच्छाया का कालापन इतना कम होता है कि उसे सूर्य के इस तेज प्रकाश में देखा नहीं जा सकता।

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