कृषि भौतिक विज्ञान - प्रकाश

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 प्रकाश के गुण एवं प्रकृति

 परिभाषा - हम सभी प्रकाश (रोशनी) व अंधेरे से बचपन से ही परिचित रहे हैं। प्रकाश की उपस्थित में हमें अपने आस - पास की वस्तुएं दिखाई देती हैं तथा अंधेरे में वह दिखाई नहीं देती है। हम यह भी जानते हैं कि हमारे आसपास की वस्तुएं हमें हमारी आंखों के द्वारा दिखाई देती है। लेकिन इन वस्तुओं का दिखना प्रकाश की उपस्थिति में ही संभव होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रकाश एक ऐसे बाहरी अभिकरण(external agency) का कार्य करता है जो हमारे आसपास की वस्तु को देखने में हमारी आंखों की सहायता करता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं-- "प्रकाश वह बाहरी अभिकरण है जो हमारी आंखों की दृष्टि संवेदना को जागृत करता है।"

 

प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जो अन्य ऊर्जाओं की भांति दृष्टिगोचर नहीं होती। जब प्रकाश किसी वस्तु पर पड़ता है तो वह उस वस्तु से परावर्तित होकर चारों ओर फैल जाता है तथा यह फैला हुआ प्रकाश जब हमारी आंखों में प्रवेश करता है तो हमें वस्तुएं दिखाई देने लगते हैं। प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा होने के कारण अन्य ऊर्जाओं में रूपांतरित किया जा सकता है तथा अन्य ऊर्जाओं को प्रकाश में बदल सकता है।

 प्रकाश के गुण (Properties Of Light)

                     (1) प्रकाश का गमन सीधी रेखा में होता है। प्रकाश की सीधी रेखा में गमन को हम निम्न प्रयोग के द्वारा देख सकते हैं --

                इस प्रयोग में हम कार्डबोर्ड के एक ही साइज के तीन आयताकार टुकड़े लेते हैं। इन तीनों टुकड़ों के मध्य में एक बारीक छिद्र कर देते हैं तथा अब इन टुकड़ों को एक समतल मेज पर इस प्रकार रखते हैं कि तीनों टुकड़ों के छिद्र एक सीधी रेखा में हो ।


अब चित्रानुसार एक जलती हुई मोमबत्ती को कार्ड बोर्ड के टुकड़े A के सम्मुख इस प्रकार रखते हैं कि मोमबत्ती की लौ तीनों टुकड़ों के छिद्रों के साथ एक सीधी रेखा में रहे। अब हम अपनी आंख को टुकड़े C के छिद्र की सीध में लाते हैं तो हमें लौ दिखाई देती हैं। यदि हम तीनों टुकड़ों या मोमबत्ती में से किसी एक को थोड़ा ऊपर नीचे या इधर-उधर किसका ने तो हमें लौ दिखाएं नहीं देती हैं।
अतः इससे स्पष्ट होता है कि प्रकाश का गमन एक सीधी रेखा में होता है। इसे प्रकाश का ' ऋजुरेखीय संचरण' कहते हैं।
(2) प्रकाश को अपने संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। प्रकाश का गमन निर्वात में भी हो सकता हैं। निर्वात में प्रकाश की चाल 3×108 मी./से. होती है तथा माध्यम के बदलने पर यह बदलती है ।
(3) प्रकाश किरणें एक दूसरे के मार्ग में बाधा उत्पन्न नहीं करती है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि प्रकाश किरणें एक दूसरे के व्यवहार को प्रभावित नहीं करती है।
(4) प्रकाश का परावर्तन होता है । जब प्रकाश किसी माध्यम के तल से टकराता है तो उसका अधिकांश भाग तल से टकरा करो एक निश्चित दिशा में वापस लौट आता है। प्रकाश के इस प्रकाश लौटने के गुणों को प्रकाश का परावर्तन कहते है। परावर्तित प्रकाश (टकराकर लौटने वाला प्रकाश) की मात्रा माध्यम के तल की प्रकृति पर निर्भर करती है। तल जितना अधिक चिकना या पालिशदार होता है, परावर्तित प्रकाश की मात्रा भी उतनी ही अधिक होती है।
(5) प्रकाश का अपवर्तन होता है। जब कभी प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है तो वह अपने पूर्व मार्ग से विचलित हो जाता है। प्रकाश के किस गुण को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।

 (6) प्रकाश का विवर्तन होता है। जब प्रकाश किसी पतली स्टील अथवा किसी तीक्ष्ण अवरोधक पर पड़ता है तो वह स्टील अथवा अवरोधक के किनारों पर स्टील या अवरोधक की छाया में प्रवेश कर जाता है। प्रकाश के इस गुण को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।

(7) प्रकाश का व्यतिकरण होता है। जब सामान आवर्ती की दो प्रकाश तरंगें (किरणें), किसी माध्यम में एक साथ चलती हैं तो माध्यम के विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश की तीव्रता उन तरंगों की अलग-अलग तीव्रता ओं के योग से भिन्न होते हैं। कुछ बिंदुओं पर तीव्रता अधिकतम व कुछ बिंदुओं पर न्यूनतम होती है। प्रकाश के इस गुण को प्रकाश का व्यतिकरण कहते हैं।
(8) प्रकाश का प्रकीर्णन होता है। जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम में से गुजरता है जिसमें अत्यंत सूक्ष्म कण ( धूल तथा अन्य पदार्थों के अत्यन्त सूक्ष्म कण)उपस्थित होते है, तब वह इन कणों द्वारा सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है। प्रकाश के इस गुण को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है । बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। पॄथ्वी से आकाश का नीला दिखना प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।

(9) प्रकाश का वर्ण - विक्षेपण होता है। जब प्रकाश चित्रानुसार झिर्री S से आता हुआ किसी प्रिज्म में से गुजरता है, तो वह प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ साथ अपने सात अवयवी रंगो में प्रथक प्रथक हो जाता है। प्रकाश के इस प्रकार अपने अवयवी रंगो में प्रथक होने के गुण को प्रकाश का वर्ण विक्षेप‌ण कहते है।
(10) प्रकाश का ध्रुवण होता है। प्रकाश वैद्युत चुम्बकीय तरंगों है जिनमे वैद्युत व चुम्बकीय क्षेत्र के संदेश , तरंग संचरण की दिशा के लंबवत हर सम्भव दिशा में कम्पन करते है । जब यह प्रकाश किसी विशेष माध्यम; जैसे - टूरमैलीन, कैल्साइट क्रिस्टल व पोलेरोइड फिल्म आदि में से गुजरता है, तो निर्गत प्रकाश में वैद्युत क्षेत्र के सदिश या तो प्रकाश संचरण की दिशा के लंबवत एक ही तल ( एक निश्चित दिशा ) में कम्पन करते हैं या उनका परिणाम व दिक विन्यास किसी निश्चित नियम के अनुसार परिवर्तित होते हैं। प्रकाश का यह गुण, प्रकाश का ध्रुवण 
कहलाता है। प्रकाश का ध्रुवण प्रकाश तरंग की अनुप्रस्थ प्रकृति की पुष्टि करता है।

 (11) प्रकाश में उत्क्रमणीयता का गुण होता है। जब प्रकाश किरण एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक एक निश्चित मार्ग का अनुसरण करती हुई पहुंचती है तब यदि उसका मार्ग किसी प्रकार उलट दिया जाए तो वह ठीक उसी मार्ग का अनुसरण करती हुई पहले बिंदु पर लौट आती है तथा उन सभी क्रियाओं को ठीक उसी प्रकार पूर्ण करती है जिस प्रकार उसने जाते समय किया था। अतः प्रकाश किरणें उत्क्रमणीयता के सिद्धांत का पालन करती हैं।

(12) प्रकाश स्वयं दिखाई नहीं देता है लेकिन आस पास की वस्तुओं को दिखाता है।
जब एक प्रकाश पुंज किसी अंधेरे कमरे में किसी छोटे छिद्र से होकर पहुंचता है तो चमकती हुई एक सीधी रेखा दिखाई देती  है। सामान्यत: हम समझते है कि प्रकाश पुंज दिखाई दे रहा है। लेकिन वास्तव मैं प्रकाश पुंज दिखाई नहीं दे रहा है बल्कि उसके मार्ग में उपस्थित धूल के कणों से प्रकाश चारों दिशाओं में प्रकीर्णन हो जाता है जिससे हमें इन कणों की एक चमकती रेखा दिखाई देती है।

महत्वपूर्ण तथ्य
  • सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल दिखना प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।
  • साबुन के बुलबुले का रंगीन दिखाई देना प्रकाश के व्यतिकरण का कारण होता है।
प्रकाश की प्रकृति (Nature Of Light)
                       प्रकाश ऊर्जा का ही एक रूप है जो हमारी आंख के रेटिना को उत्तेजित करके हमें देखने की क्षमता प्रदान करता है।प्रकाश को ऊर्जा के अन्य रूपों में तथा अन्य ऊर्जाओं को प्रकाश में बदला जा सकता है
इस कथन की पुष्टि अनेक प्रयोगों द्वारा हो चुके हैं। प्रकाश में परिवर्तन, अपवर्तन, विवर्तन, व्यतिकरण, ध्रुवण, सीधी रेखा में चलना, निर्वात में संचरण, धातु से इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित कर देना आदि का गुण भी होता है। इन सभी तत्वों की व्याख्या करने के लिए प्रकाश की प्रकृति के संदर्भ में विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादित किए गए जिनमें न्यूटन का कणिका सिद्धांत, हाइगेंस का तरंग सिद्धांत, मैक्स वेल का विद्युत चुंबकीय तरंग सिद्धांत एवं प्लांक का क्वांटम सिद्धांत, विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे हैं।

 (1) न्यूटन का कणिका सिद्धांत - न्यूटन ने प्रकाश की विभिन्न घटनाओं व गुणों की व्याख्या करने के लिए 1965 में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया। इसके मुख्य बिंदु निम्नवत् है- 

(A) प्रत्येक प्रकाश - स्त्रोत लगातार असंख्य, सूक्ष्म एवं हल्के गण उत्सर्जित करता है। यह कण अदृश्य होते हैं जिन्हें कणिकाएं कहते हैं।
(B) यह कणिकाएं सभी दिशाओं में प्रकाश के वेग से सीधी रेखा में गमन करती है तथा अपने साथ ऊर्जा का वहन कहते हैं ।
(C) जब यह कणिकाएं हमारी आंख के रेटिना से टकराती है तो हमें देखने की क्षमता प्रदान करते हैं।
(D) भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश की कणिकाएं भिन्न-भिन्न आकारों की होती हैं।
न्यूटन का कणिका सिद्धांत प्रकाश के कुछेक गुण व घटनाओं की व्याख्या करने में तो सफल रहा लेकिन अधिकतर गुणों की व्याख्या ना कर सका। इस कारण न्यूटन का कणिका सिद्धांत को मान्यता नहीं मिली नॉन स्टॉप
(2) हाइगेंस का तरंग सिद्धांत - प्रकाश से संबंधित विभिन्न घटनाओं में गुणों की व्याख्या करने के लिए हाइगेंस ने 1678 में तरंग सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश तरंगों के रूप में संचारित होता है।
प्रकाश स्त्रोत से प्रकाश तरंगें उत्सर्जित होती हैं तथा यह सभी दिशाओं में प्रकाश के वेग से संचारित होती हैं। हाइगेंस ने इन तरंगों के संचरण के लिए एक सर्व व्यापी माध्यम ' ईथर ' की कल्पना की तथा यह माना कि ईथर भारहीन है व पदार्थों के अंदर प्रवेश कर सकता। ईथर के बारे में यह भी माना गया कि तरंगों के संचरण के लिए आवश्यक सभी शर्तों का यह पालन करता है तथा इसका घनत्व में बहुत कम व प्रत्यास्थता बहुत अधिक है। ईथर बहुत कम तथा प्रत्यास्थता बहुत अधिक होने के कारण प्रकाश तरंगों का वेग बहुत अधिक होता है। जब यह तरंगे हमारी आंख के रेटिना से टकराती हैं तो हमें देखने की क्षमता प्रदान करती है। प्रकाश के रंगों के संदर्भ में हाइगेंस ने कहा कहा की प्रकाश के विभिन्न रंग, तरंगों की तरंगदैर्ध्य भिन्न भिन्न होने के कारण।

              प्रकाश तरंगें माध्यम में किस प्रकार संचरण करती हैं इसकी व्याख्या के लिए हाइगेंस ने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे हाइगेंस का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत  कहते हैं।

           हाई गेंस ने तरंग सिद्धांत के आधार पर प्रकाश के परावर्तन एवं अपवर्तन की व्याख्या सफलतापूर्वक की। सन् 1801 मैं यंग मैं प्रकाश के व्यतिकरण की व्याख्या तरंग सिद्धांत से की तथा इसके बाद फ्रेनल ने प्रकाश के विवर्तन की व्याख्या हाइगेंस के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धांत से कर दी।
हाइगेंस ने प्रकाश-तरंगों को अनुदैर्ध्य माना था, इस ध्रुवण की व्याख्या नहीं हो सकी। लेकिन निल ने प्रकाश तरंगों को अनुप्रस्थ माना तथा इसके आधार पर ध्रुवण की व्याख्या की।

हाइगेन्स के तरंग सिद्धान्त की निम्न कमियाँ रहीं (i) हाइगेन्स द्वारा माने गये सर्वव्यापी माध्यम 'ईथर' की प्रयोगात्मक रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है (ii) यह सिद्धान्त प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या करने में असफल रहा।
(3) प्रकाश का वैद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त- सन् 1865 में मैक्सवेल ने गणितीय आधार पर वैद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार समय-परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र वैद्युत क्षेत्र के स्रोत का कार्य करता है व समय-परिवर्ती वैद्युत क्षेत्र, चुम्बकीय क्षेत्र के स्रोत का कार्य करता है। ये क्षेत्र एक-दूसरे की उपस्थिति बनाये रखते हुए, एक विक्षोभ उत्पन्न करते हैं जिसमें समय-परिवर्ती वैद्युत व चुम्बकीय क्षेत्र होते हैं तथा यह विक्षोभ एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना किसी माध्यम के संचरित हो सकता है। इन विक्षोभों में तरंगों के सभी गुण होते हैं तथा इन्हें वैद्युत-चुम्बकीय तरंगें कहा गया। मैक्सवेल ने गणना करके यह सिद्ध किया कि निर्वात में वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों का वेग 3 x 108 मीटर/सेकण्ड होता है जोकि निर्वात में प्रकाश के वेग के बराबर है। इसी से मैक्सवेल ने यह निष्कर्ष निकाला कि प्रकाश एक वैद्युत-चुम्बकीय तरंग है। वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों में वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्रों के सदिश परस्पर तथा तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् कम्पन्न करते हैं। अतः इन तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।

 प्रकाश के वैद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त के अनुसार, प्रकाश के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। अतः हाइगेन्स ने प्रकाश तरंगों के संचरण के लिए जिस सर्वव्यापी माध्यम 'ईथर' की कल्पना की थी तथा इस माध्यम की प्रयोगात्मक रूप से पुष्टि भी नहीं हो सकी है, की यहाँ पर कोई आवश्यकता नहीं है। प्रकाश के वैद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त से प्रकाश के परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन, व्यतिकरण व ध्रुवण की व्याख्या सफलतापूर्वक की गयी। इस सिद्धान्त से किसी कृष्णिका से उत्सर्जित विकिरण के स्पेक्ट्रम में ऊर्जा का वितरण, प्रकाश वैद्युत-प्रभाव व कॉम्टन प्रभाव आदि की व्याख्या नहीं की जा सकी।

महत्वपूर्ण

• वैद्युत - चुम्बकीय तरंगों के अस्तित्व की प्रयोगात्मक पुष्टि सर्वप्रथम हर्ट्ज ने की थी।

• दूरसंचार में प्रयुक्त होने वाली रेडियो तरंगे भी वैद्युत - चुम्बकीय तरंगे है ।

(4) प्रकाश का क्वान्टम सिद्धान्त- सन् 1900 महत्त्वपूर्ण तथ्य

में प्लांक ने कृष्णिका से उत्सर्जित विकिरण के स्पेक्ट्रम • वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अस्तित्व की

में ऊर्जा वितरण की व्याख्या करने के लिए इस सिद्धान्त प्रयोगात्मक पुष्टि सर्वप्रथम हर्ट्ज़ ने की थी।

का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, विकिरण • दूरसंचार में प्रयुक्त होने वाली रेडियो तरंग भी

(वैद्युत-चुम्बकीय विकिरण) का उत्सर्जन सतत् न वैद्युत-चुम्बकीय तरंगें हैं।

 होकर ऊर्जा की निश्चित मात्रा के छोटे-छोटे बण्डलों या पैकिटों के रूप में होता है तथा इन बण्डलों को 'क्वांटा' कहते हैं। बाद में इन बण्डलों को 'फोटॉन' नाम दिया गया। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hy होती है, जहाँ ७ उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति तथा । प्लांक-नियतांक है। अत: उत्सर्जित विकिरण की ऊर्जा hy, 2ny, 3he... ही हो सकती है, इनके बीच में नहीं। बाद में सन् 1905 में आइन्स्टीन ने प्लांक के क्वान्टम सिद्धान्त से प्रकाश वैद्युत-प्रभाव की व्याख्या की। इस सिद्धान्त से प्रकाश व पदार्थ की आपसी क्रिया से उत्पन्न सभी घटनाओं की व्याख्या सफलतापर्वक की गयी। लेकिन यह सिद्धान्त प्रकाश के व्यतिकरण, विवर्तन, ध्रुवण आदि की व्याख्या करने में असफल रहा।

प्रकाश की द्वैत प्रकृति
[DUAL NATURE OF LIGHT] 


ऊपर वर्णित सिद्धान्तों में से कोई भी सिद्धान्त प्रकाश के सभी गुण व घटनाओं की व्याख्या नहीं कर सका। प्रकाश के परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन, व्यतिकरण व ध्रुवण आदि की व्याख्या केवल प्रकाश के तरंग सिद्धान्त से ही सन्तोषजनक की जा सकती है। दूसरी ओर प्रकाश के कुछ गुण व घटनायें केवल प्रकाश के क्वान्टम सिद्धान्त द्वारा ही समझाये जा सकते हैं; जैसे- प्रकाश वैद्युत-प्रभाव, कॉम्टन प्रभाव आदि। इससे जात होता है कि प्रकाश, तरंग प्रकृति एवं कण प्रकृति दोनों का ही प्रदर्शन करता है। सन् 1924 में डी-बॉली ने कहा कि प्रकृति सममिति (symmetry) से प्यार करती है। अत: जिस प्रकार प्रकाश द्वैत प्रकृति का प्रदर्शन करता है, उसी प्रकार पदार्थ को भी द्वैत प्रकृति का प्रदर्शन करना चाहिए। 

 इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन जिन्हें हम सामान्यतः कण समझते हैं, उन्हें कुछ परिस्थितियों में तरंग की तरह व्यवहार करना चाहिए। डी-ब्रॉग्ली के अनुसार, गतिमान कण के साथ तरंग सम्बद्ध होती है जिसकी तरंगदैर्ध्य कण के संवेग से उसी प्रकार सम्बन्धित होती है जिस प्रकार प्रकाश के फोटॉन की होती है। सन् 1927 में डेविसन एवं जरमर के प्रयोग से डी-ब्रॉग्ली की परिकल्पना की पुष्टि हुई तथा द्वैत प्रकृति को सही रूप में मान्यता मिली। आधुनिक विचार के अनुसार प्रकाश,

 र्जा के छोटे-छोटे बन्डलों जो कण व तरंग दोनों प्रकृति रखते हैं, के रूप में एक निश्चित वेग से गमन करता है। प्रकाश एक समय पर केवल एक प्रकृति का प्रदर्शन करता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि प्रकाश किसी भी क्षण दोनों प्रकृतियों का प्रदर्शन एक साथ नहीं करता है।

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